बुद्ध धर्म भारत में इतना कम कैसे हो गया? – एक विस्तृत विश्लेषण

प्रस्तावना
बुद्ध धर्म, जो छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गौतम बुद्ध द्वारा स्थापित किया गया था, एक समय में भारत की प्रमुख धार्मिक परंपरा बन गया था। यह धर्म करुणा, अहिंसा, तर्क और आत्म-उद्धार पर आधारित था और इसकी शिक्षाओं ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जिस भारत भूमि में यह जन्मा और पनपा, वहीं यह धीरे-धीरे अल्पसंख्यक बन गया। आज भारत में बौद्ध धर्म का अनुयायी वर्ग अन्य धर्मों की तुलना में बहुत छोटा है। इस लेख में हम विस्तारपूर्वक उन ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक कारणों का विश्लेषण करेंगे जिनकी वजह से बुद्ध धर्म भारत में इतना कम हो गया।
1. प्रारंभिक उत्कर्ष और विस्तार
गौतम बुद्ध के जीवनकाल में ही उनकी शिक्षाएं तेजी से फैलने लगी थीं। उनके निर्वाण के पश्चात उनके अनुयायियों ने संगठित रूप से 'संघ' की स्थापना की, और अनेक बौद्ध विहार, विश्वविद्यालय (जैसे नालंदा, विक्रमशिला, तक्षशिला) बने। मौर्य सम्राट अशोक के समय (268–232 ई.पू.) बौद्ध धर्म को राज्याश्रय प्राप्त हुआ और यह दक्षिण एशिया से लेकर मध्य एशिया, चीन, जापान, कोरिया और तिब्बत तक फैल गया।
2. बुद्ध धर्म के ह्रास के प्रमुख कारण
2.1 ब्राह्मणवाद का पुनरुत्थान
बुद्ध धर्म ने जाति प्रथा, वेदों की सर्वोच्चता और यज्ञों की हिंसा का विरोध किया था। इससे ब्राह्मण वर्ग को सीधी चुनौती मिली। गुप्तकाल (लगभग 4वीं से 6वीं सदी ईस्वी) के दौरान ब्राह्मणवाद को पुनः संरक्षण मिलने लगा और धर्म पुनः कर्मकांड, पूजा-पाठ और जातिगत व्यवस्था की ओर लौटने लगा।
👉 उदाहरण: गुप्त सम्राटों ने वैदिक धर्म और ब्राह्मणों को संरक्षण दिया। इस काल में मंदिर निर्माण, मूर्तिपूजा और संस्कृत भाषा का पुनः उत्कर्ष हुआ, जबकि बौद्ध विहारों और विहारवासियों को धीरे-धीरे कम महत्व दिया गया।
2.2 बौद्ध धर्म में आंतरिक विभाजन और जटिलता
बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध संघ में विभिन्न मतभेद उत्पन्न हुए। हीनयान और महायान जैसे संप्रदायों के बीच doctrinal मतभेद बढ़े। यह विघटन बुद्ध धर्म की एकता को कमजोर करता गया।
👉 विवरण:
हीनयान ने बुद्ध को एक महान शिक्षक माना, जबकि
महायान ने उन्हें ईश्वरतुल्य बना दिया और बोधिसत्व पूजा को बढ़ावा दिया, जिससे बुद्ध धर्म की सादगी और तर्कवाद कमजोर हुआ।
2.3 हिंदू धर्म में बुद्ध को 'अवतार' के रूप में समाहित करना
हिंदू धार्मिक ग्रंथों में बुद्ध को विष्णु के दशावतारों में से एक मान लिया गया। इससे बुद्ध को एक हिंदू अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिससे आमजन में यह धारणा बनी कि बुद्ध धर्म कोई अलग धर्म नहीं, बल्कि हिंदू धर्म का ही एक भाग है।
👉 परिणाम: इस समाहितिकरण की प्रक्रिया ने बुद्ध धर्म की स्वतंत्र पहचान को धुंधला कर दिया।
2.4 मुस्लिम आक्रमणों का प्रभाव
8वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान भारत पर हुए मुस्लिम आक्रमणों ने बौद्ध धर्म के लिए एक और घातक झटका दिया। नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे बौद्ध विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया, और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दी गई या उन्हें पलायन करना पड़ा।
👉 विशेष उल्लेख:
1193 ईस्वी में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया और हजारों भिक्षुओं की हत्या की गई।
यह बौद्ध धर्म की विद्या-परंपरा और संस्थागत संरचना के विनाश का कारण बना।
2.5 राजनैतिक संरक्षण का अभाव
सम्राट अशोक और कनिष्क जैसे शासकों के बाद बौद्ध धर्म को वैसा राजनैतिक संरक्षण नहीं मिला। राजाओं की उपेक्षा और हिंदू धर्म को संरक्षण मिलने के कारण बौद्ध संस्थाएं धीरे-धीरे खत्म होती गईं।
2.6 आर्थिक कारण
बुद्ध धर्म के मठ लंबे समय तक दान और राजकीय अनुदानों पर निर्भर थे। जब ये अनुदान बंद हुए और समाज में भिक्षु व्यवस्था पर प्रश्न उठने लगे, तब मठों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। इससे संघ की सामाजिक पकड़ कमजोर हुई।
3. डॉ. भीमराव अंबेडकर और बुद्ध धर्म का पुनरुत्थान
20वीं शताब्दी में डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को दलितों के लिए सामाजिक मुक्ति का साधन माना। उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। उनके प्रयासों से एक बार फिर बुद्ध धर्म भारत में चर्चा का विषय बना और विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में नवबौद्ध आंदोलन शुरू हुआ।
👉 डॉ. अंबेडकर की दृष्टि में:
- बुद्ध धर्म तर्क, समानता, और सामाजिक न्याय का धर्म है।
- यह जातिवाद का खंडन करता है और व्यक्ति को आत्मगौरव देता है।
4. वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
आज भारत में बौद्धों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 0.7% है (जनगणना 2011 के अनुसार)। ये अधिकांशतः महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश आदि में निवास करते हैं।
हालांकि, बौद्ध विचारधारा ने शिक्षा, मानव अधिकारों, और सामाजिक सुधारों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
चुनौतियाँ:
- शिक्षा और संसाधनों की कमी
- संघ की प्रभावशीलता में कमी
- जागरूकता और प्रचार-प्रसार का अभाव
निष्कर्ष
बुद्ध धर्म का पतन एक जटिल ऐतिहासिक प्रक्रिया थी जिसमें आंतरिक कमजोरी, ब्राह्मणवादी प्रतिक्रिया, मुस्लिम आक्रमण, राजकीय उपेक्षा और सांस्कृतिक समाहितिकरण जैसे कारक शामिल थे। परंतु यह भी सत्य है कि बुद्ध की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं—चाहे वह अहिंसा हो, आत्मनिर्भरता हो या समता का विचार।
बुद्ध धर्म आज भी भारत में एक पुनरुत्थान की राह पर है, विशेषकर जब डॉ. अंबेडकर के विचारों के माध्यम से नवबौद्ध आंदोलन को नई ऊर्जा मिल रही है। यदि सामाजिक न्याय, समता और करुणा को फिर से प्राथमिकता दी जाए, तो यह धर्म एक बार फिर भारत में गहराई से स्थापित हो सकता है।
"बुद्धं शरणं गच्छामि"
यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि एक क्रांति की घोषणा है।
अगर आप चाहें, तो मैं इस लेख को पीडीएफ या ब्लॉग पोस्ट के रूप में भी तैयार कर सकता हूँ, या इसमें ऐतिहासिक चित्र और संदर्भ ग्रंथों के उल्लेख जोड़ सकता हूँ।
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