गिउडार्नो (फिलिपो) ब्रूनो: एक महान वैज्ञानिक और स्वतंत्र विचारक

गिउडार्नो (फिलिपो) ब्रूनो: एक महान वैज्ञानिक और स्वतंत्र विचारक



 जन्म और प्रारंभिक जीवन

 गिउडार्नो (फिलिपो) ब्रूनो का जन्म 1548 में नोला, नेपल्स साम्राज्य, इटली में हुआ था। उनके पिता जियोवानी ब्रूनो एक सैनिक थे। कम उम्र में, ब्रूनो ने उल्लेखनीय बुद्धिमत्ता और जिज्ञासा दिखाई। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्हें नेपल्स भेजा गया जहाँ उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की। अपने छात्र जीवन के दौरान, वह आमतौर पर व्यक्तियों के व्याख्यान सुनने के लिए शैक्षणिक संस्थानों या स्टेडियमों में जाते थे।



 धार्मिक जीवन और त्याग

 एक बच्चे के रूप में, ब्रूनो धार्मिक जीवन की आकांक्षा रखते थे और 1565 में वे डोमिनिकन मठ में शामिल हो गए। 1572 में उन्हें चर्च का पादरी बनाया गया। हालाँकि, ब्रूनो के विचार रूढ़िवादी धार्मिक व्यवस्था के साथ असंगत थे। 1576 में उन पर नास्तिकता और चर्च विरोधी विचार रखने का आरोप लगाया गया। इन आरोपों के कारण, उन्हें रोम जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जहाँ अंततः उन्होंने चर्च छोड़ दिया।



 यात्रा और वैज्ञानिक विचारधारा

 चर्च छोड़ने के बाद ब्रूनो ने यूरोप के कई देशों का दौरा किया। उन्होंने फ्रांस, इंग्लैण्ड, जर्मनी और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में ज्ञान और विज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। 1581-1583 के दौरान उन्होंने इंग्लैंड की यात्रा की, जहाँ उन्होंने अपने पहले तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे। उन्होंने निकोलस कोपरनिकस के विचारों का समर्थन किया, जिसके अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। इसके अलावा, ब्रूनो ने यह भी तर्क दिया कि ब्रह्मांड अनंत है और इसमें असंख्य ग्रह और तारे हैं।



 रचनाएँ एवं सिद्धांत

 गिउडार्नो ब्रूनो ने 30 से अधिक वैज्ञानिक और दार्शनिक ग्रंथ लिखे। उनकी तीन प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:


 1. बुधवार भोज - जिसमें वह कोपरनिकस के विचारों की ओर प्रवृत्त होता है।


 2. तर्क, सिद्धांत और एकता - जिसमें उन्होंने संसार के नये सिद्धांत प्रस्तुत किये।


 3. ब्रह्मांड की अनंतता - जिसमें ब्रूनो का तर्क है कि ब्रह्मांड विशाल है, और पृथ्वी की तरह अन्य दुनिया भी हैं।



 गिरफ़्तारी और मौत

 1591 में, एक पुजारी के निमंत्रण पर, ब्रूनो इटली लौट आये। 23 मई 1592 को चर्च ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और वेनिस में कैद कर दिया। उन्हें आठ साल तक रोम की अंधेरी कालकोठरियों में कैद रखा गया। ब्रूनो पर अपने विचार वापस लेने के लिए दबाव डाला गया, लेकिन वह अपने सिद्धांतों के प्रति सच्चे रहे। 20 जनवरी 1600 को उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई। 17 फरवरी 1600 को रोम के मार्केट स्क्वायर में उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया और जिंदा जला दिया गया। अपनी मृत्यु तक वे अपने विचारों के लिए लड़ते रहे।



 पश्चाताप और सम्मान

 ब्रूनो की शहादत को लोग और विज्ञान प्रेमी कभी नहीं भूले हैं। 20 जनवरी 2000 को चर्च के पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें दी गई मौत की सज़ा पर खेद व्यक्त किया। आज वे विज्ञान और स्वतंत्र विचार के महान प्रतीक माने जाते हैं।


Balwinder Singh 

baginotes.blogspot.com 

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