मेरे अंदर

 जब मैं बात करूंगा
समलैंगिकों के हक़ में
आप ढूँढेंगे
मेरे अंदर एक समलैंगिक
जब मैं
मुस्लिमों के हक़ की बात करूंगा
आप ढूँढेंगे
मेरे अंदर का मुस्लिम
फिर मैं
पेड़ों के हक़ में बोलूंगा
तो मुझे उम्मीद है 
आप मेरे भीतर एक जंगल ढूँढेंगे
जब पानी के लिए लिखूंगा
तो एक नदी ढूंढिएगा मेरे भीतर
फिर किसी मज़दूर
या किसान
एक औरत
एक पंछी
ये धरती 
मैं जिस-जिस मज़लूम के हक़ में बोलूँ
उन सब को आप मेरे भीतर ही ढूंढिएगा
आप ढूंढिएगा मेरे भीतर
प्रेम
फिर किसी दिन अंधेरा
दुःख और सुख
क्रोध और ग्लानि
यहाँ तक कि अपना अकेलापन भी मेरे भीतर ढूंढिएगा आप
मैं इसकी आशा नही करता
मगर फिर भी
अगर किसी एक दिन 
जब आप भी खड़े होंगे
शोषण के दायरे में
मैं 
आपके हक़ में बोलूंगा
तब आप
अगर ढूँढ सकें
तो मेरे अंदर अपने आप को ढूंढिएगा
मैं आपका ईश्वर हूँ
आपकी अनास्था से जन्मी आस्था का ईश्वर।। 
पुनीत शर्मा

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