कविता को प्यास होना चाहिए — देवेन्द्र आर्य
कविता को प्यास होना चाहिए
पेड़ नहीं कहता
कि मैं पृथ्वी का फेफड़ा हूँ
कविता को पेड़ होना चाहिए
नदी नहीं कहती कि मैं प्यार हूँ
प्रवाह जीवनदायिनी
ऊर्जा संकेत
मैं ने सींचे हैं सभ्यताओं के खेत
कविता को नदी होना चहिये
हवा नहीं कहती
कि मैं न रहूँ तो उठ नहीं सकतीं आंधियाँ
अग्नि-बीज अंकुरित नहीं हो सकते
पसीना सूखता है तो मेरे दम
कविता को हवा होना चाहिए
हवाई नहीं
चिराग कभी दावा नहीं करते
कि उनकी मुठभेड़ अंधेरों से है
कविता चिराग का मौन है
जयकारा नहीं
जीभ स्वाद के व्याकरण पर
विमर्श नहीं करती
कविता को मनुष्यता का स्वाद होना चाहिए
तृप्ती से सीखती है कविता
प्यास की भाषा
कविता को प्यास होना चाहिए
— देवेन्द्र आर्य
Comments
Post a Comment