कामयाब आदमी के पीछे — श्रुति कुशवाहा

 कामयाब आदमी के पीछे

एक बीवी होती है

जो पकाती है खाना

सजाती है घर

और पति के चड्डी बनियान धोती है

धुले कपड़े पहन

आदमी अपनी प्रेमिका के पास जाता है

कामयाब आदमी के पास 

अमूमन दो चार प्रेमिकाएँ होती हैं 


आदमी बड़ी कुशलता से

एक से दूसरी, दूसरी से तीसरी को छिपाता है

कभी भेद खुलने पर

पत्नी को कहता है "'ग़लती हो गई"

इस तरह हर स्त्री के सामने

दूसरी स्त्री '"ग़लती" होती है

आदमी ग़लतियों का पुतला है

अपने शौक़ को ग़लती का नाम देकर

वो हर बार पा जाता है एक और मौक़ा

आदमी के लिये स्त्री अक्सर मौक़ा होती है 


कामयाब आदमी की पत्नी

डीपी और प्रोफाइल पिक्चर में लगाती है

पति से सटकर खींची हुई तस्वीर

बड़े हो रहे बच्चे की खातिर

छोटा होता जाता है उसका स्वाभिमान

इधर प्रेमिका को पता है

कोलकाता में नया सिलसिला शुरू है

रोज़ सुबह होती है बात

शाम के मैसेज का तय है समय 

प्रेमिका को पसंद है ब्लॉक वाला फीचर 


कामयाब आदमी खुद को माहिर खिलाड़ी मानता है

लेकिन उसे ये भी पता होना चाहिए

उसके जीवन में आई स्त्रियाँ

उसे आदमी तक नहीं मानतीं


आदमज़ात होना ही आदमी होना नहीं होता 


                                                           — श्रुति कुशवाहा





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